G20: बिहार के इन शहरों में जुटेंगे विदेशी मेहमान, आयोजन की चल रही खास तैयारीभारत के प्रेसीडेंसी में हो G20 की बैठक ने आकार लेना शुरू कर दिया है। G20 की अध्यक्षता को लेकर भारत में 200 अलग-अलग बैठकें होंगी। इन बैठकों में बिहार में भी बैठक आयोजित की गई है। G20 को लेकर बिहार सरकार तैयारी कर रही है। G20 समूह की बैठकों के लिए बिहार को मार्च के महीने में वक्त मिला है। जानकारी के अनुसार मार्च में होने वाली बैठक के लिए सरकार ने अभी से ही तैयारियां शुरू कर दी है।
बिहार के ये तीन शहर शामिल
बिहार के तीन शहरों गया, राजगीर और नालंदा में G20 से जुड़ी बैठक आयोजित की जाएगी। जिसमें G20 में शामिल देशों के प्रतिनिधि भाग लेंगे। G20 में शामिल देशों के प्रतिनिधियों के लिए बिहार के इन 3 शहरों को विशेष तौर पर सजाया जा रहा है। इस मंच की सबसे बड़ी बात है हर साल शिखर सम्मेलन में दुनिया के कई देशों के शीर्ष नेताओं की आपस में मुलाकात करते है साथ ही इस साल भारत जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है।
बिहार के लिए अपनी प्रस्तुति देने का एक बड़ा अवसर
गौरवशाली अतीत और समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर वाले बिहार के लिए अपनी प्रस्तुति देने का यह एक बड़ा अवसर है। राज्य ने अपने कला और शिल्प के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान हासिल की है। G20 से जुड़ी यह बैठकें अगले साल मार्च राज्य के कुछ महत्वपूर्ण स्थानों पर होंगी।
देश के सौ स्मारकों में बिहार के आठ स्मारक शामिल
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा बिहार में संरक्षित आठ स्मारकों को G20 ‘लोगो’ के साथ प्रदर्शित करने के लिए पूरे भारत से चुने गये सौ स्मारकों में शामिल किया गया है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अनुसार नालंदा महाविहार, सोन भंडार की गुफाएं, सुजाता स्तूप, विक्रमशिला महाविहार, शेरशाह सूरी का मकबरा, कोल्हुआ स्तूप और केसरिया स्तूप इनमें शामिल किये गए हैं।
क्या है ग्रुप ऑफ ट्वेंटी ?
G20 को ग्रुप ऑफ ट्वेंटी भी कहा जाता है। यह यूरोपीय संघ और 19 देशों का एक अनौपचारिक समूह है। G20 शिखर सम्मेलन में इसके नेता हर साल शामिल होते हैं और वैश्विक अर्थव्यवस्था को कैसे आगे बढ़ाया जाए इस पर चर्चा करते हैं। इसका गठन साल 1999 में हुआ था। साथ ही यह एक मंत्रिस्तरीय मंच है जिसे G7 द्वारा विकसित एवं विकासशील दोनों अर्थव्यवस्थाओं के सहयोग से गठित किया गया था। G20 में 19 देश हैं। इन देशों में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, कोरिया, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, यूके, यूएसए और यूरोपीय संघ शामिल है।
भारत पहली बार कर रहा अध्यक्षता
भारत पहली बार जी 20 देशों की अध्यक्षता करने जा रही है। एक दिसंबर 2022 से 30 नवंबर 2023 तक भारत जी 20 से जुड़े सभी बैठकों की अध्यक्षता करेगा। इसके लिए तैयारियां अंतिम दौर में हैं। ऐसे में जी 20 से जुड़ी तमाम जानकारी के लिए 8 नवंबर को वेबसाइट और ऐप लॉन्च किया गया। इसके साथ ही लोगो और थीम को भी पीएम मोदी ने जारी कर दिया। विदेश मंत्रालय के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वर्ष 2014 से जी-20 देशों की शिखर वार्ता में भारत का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं।
लोगो और थीम की खासियत
G20 का लोगो भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रंगों से प्रेरित है- केसरिया, सफेद और हरा, और नीला। इसमें भारत के राष्ट्रीय फूल कमल के साथ पृथ्वी को जोड़ा गया है, जो चुनौतियों के बीच विकास को दर्शाता है। पृथ्वी जीवन के प्रति भारत के धरती के अनुकूल उस दृष्टिकोण को दर्शाती है, जो प्रकृति के साथ पूर्ण सामंजस्य को प्रतिबिंबित करता है। G20 लोगो के नीचे देवनागरी लिपि में ‘भारत’ लिखा है।
इंडिया की ‘कॉफी डिप्लोमेसी’ को लेकर क्या हैं इंडियन कॉफी बोर्ड की तैयारियां*
बेंगलुरु में आयोजित किए गए जी20 के आयोजन के दौरान विभिन्न देशों से आए प्रतिनिधियों ने इंडियन कॉफी का जमकर लुत्फ़ उठाया। इसके लिए कर्नाटक सरकार ने इंडियन कॉफी बोर्ड के साथ मिलकर विशेष इंतजाम किए थे। इसे सरकार के द्वारा इंडियन कॉफी को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने के कदम के तौर पर देखा जा रहा है।
डीडी इंडिया के साथ बातचीत में इंडियन कॉफी बोर्ड से डॉ राम्या ने काफी महत्वपूर्ण जानकारी साझा की।
डॉ राम्या बताती हैं कि इंडियन कॉफी बोर्ड ने जी20 बैठकों को ध्यान मे रखते हुए काफी तैयारियां की है। उनका मुख्य मकसद जी20 बैठकों में भारत की कॉफी को बढ़ावा देना है। इसके लिए बोर्ड ने छह निजी भागीदारों के साथ साझेदारी की है।
भारत में 13 क्षेत्रीय कॉफी की किस्में उगाई जाती हैं, जिनमें से छह कर्नाटक से हैं। भारतीय कॉफी का 70 फीसदी कर्नाटक में ही उगाया जाता है। कर्नाटक देश का एक प्रमुख कॉफी उत्पादक राज्य है। यहाँ अरेबिका और रोबस्टा, दोनो प्रकार की कॉफी का उत्पादन होता है। इसके अलावे राज्य में कुछ विशेष किस्म की कॉफी भी पायी जाती हैं। इनमें मैसूर नगेट्स अतिरिक्त बोल्ड और मानसून मालाबार अरेबिका हैं ।
इसके अलावा बोर्ड के पास जीआई टैग्ड कॉफी भी हैं। जिनमें चिकमंगलूर कॉफी प्रमुख है, जो बहुत ही अनोखी कॉफी है। इसके अलावा अरेबिका कॉफी और बाबा बुडानीगिरी कॉफी, जिसकी उत्पत्ति भारत की है , वो भी जीआई पंजीकृत हैं।
निजी भागीदारों के मुताबिक जी20 बैठकों में भाग लेने आए विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों का अनुभव उनके लिए अद्भुत रहा है। G20 में ब्रांड इंडियन कॉफी को प्रमुखता मिल रही है और वास्तव में प्रतिनिधिमंडल भी इसे बहुत पसंद कर रहा है।
भारत में कॉफी का आगमन
ऐसा माना जाता है कि भारत में कॉफी की यात्रा 1600 ईस्वी के दौरान प्रसिद्ध पवित्र संत बाबा बुदान द्वारा कर्नाटक में ‘बाबा बुदन गिरी’ पर अपने आश्रम के प्रांगण में ‘मोचा’ के ‘सात बीज’ के रोपण के साथ शुरू हुई थी। 18वीं शताब्दी के दौरान दक्षिण भारत में ब्रिटिश उद्यमियों की सफलता के कारण कॉफी के व्यावसायिक बागान शुरू किए गए थे। तब से, भारतीय कॉफी उद्योग ने तेजी से प्रगति की है और दुनिया के कॉफी मानचित्र में एक अलग पहचान अर्जित की है।
भारत में कॉफी का उत्पादन
कॉफी भारत के तीन क्षेत्रों में उगाई जाती है। कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु दक्षिणी भारत के पारम्परिक कॉफ़ी उत्पादक क्षेत्र हैं। इसके बाद देश के पूर्वी तट में उड़ीसा और आंध्र प्रदेश के गैर पारम्परिक क्षेत्रों में नए कॉफ़ी उत्पादक क्षेत्रों का विकास हुआ है। तीसरे क्षेत्र में उत्तर पूर्वी भारत के अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, त्रिपुरा, मिजोरम, मेघालय, मणिपुर और असम के राज्य शामिल हैं। भारत के सिर्फ तीन राज्यों कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु का हिस्सा कॉफी उत्पादन में 83 प्रतिशत है। इसमें भी 70 प्रतिशत हिस्सा केवल एक राज्य कर्नाटक का है. राज्य का कोडागु जिला कॉफी की खेती का हब है.भारत के किसान मूल रूप से शुद्ध अरेबिका कॉफी और रोबस्टा कॉफी की खेती करते हैं।
कॉफी बोर्ड ऑफ इण्डिया
यह एक स्वायत्त निकाय कॉफी बोर्ड ऑफ इण्डिया के तहत काम करता है। जिस पर वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार का नियंत्रण है। जिसकी स्थापना संसद के एक अधिनियम के द्वारा की गयी थी। इसका उद्देश्य भारतीय कॉफी का विकास, विस्तार, इसकी गुणवत्ता में सुधार, विपणन की जानकारी और घरेलू एवं बाहरी स्तर पर इसे बढ़ावा देना है।
भारत के स्पेस सेक्टर के लिए बेहद अहम रहा यह साल*
भारत ने अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत 60 के दशक में डॉ. विक्रम साराभाई के विजन के साथ एक छोटे से रूप में की थी। छोटा इसलिए क्योंकि आज के समय की तुलना में उस समय रॉकेट के पार्ट्स को साइकिल पर ले जाया जाता था। उस शुरुआत से लेकर पिछले 6 दशकों की भारत की अंतरिक्ष कार्यक्रम की जो यात्रा रही है और आज देश इस क्षेत्र में जिस मुकाम पर खड़ा है आज उन्हीं उपलब्धियों के बारे में विस्तार से जानेंगे।
भारत ने अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम की एक छोटी सी शुरुआत से आज विश्व के सम्मुख एक विशाल उदाहरण स्थापित कर दिखाया है। अगर आप बीते 6 दशक पहले जब भारत ने इस यात्रा को शुरू किया था उस बारे में याद करें तो उस समय अमेरिका और तत्कालीन सोवियत यूनियन लगभग चंद्रमा की धरती पर उतरने की तैयारी कर रहे थे, उस समय हम गीत गाते थे चंदा मामा दूर के…
इसके बाद के समय से अब तक भारत ने अंतरिक्ष क्षेत्र में जितनी तीव्रता के साथ अपने स्पेस प्रोग्राम को आगे बढ़ाया, इससे जाहिर होता है कि हमारे वैज्ञानिकों में कितनी प्रतिभा और योग्यता रही होगी। दरअसल, पहले के समय में अभाव के कारण उस तरह का वातावरण उन्हें नीति निर्धारित करने वाली व्यवस्थाओं के माध्यम से उपलब्ध नहीं हो पाता था और वह कमी पीएम मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद दूर हुई।
बीते 8 साल में भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को मिला क्वांटम जंप
पिछले 8 साल में पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक क्वांटम जंप हुआ। इसके पीछे वे क्रांतिकारी निर्णय हैं जो पीएम मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार द्वारा लिए गए। केंद्र सरकार ने पिछली कुछ रिवायतों और बंधनों को तोड़ते हुए अंतरिक्ष क्षेत्र को प्राइवेट प्लेस के लिए खोल दिया गया। साथ ही साथ अंतरिक्ष विज्ञान को रोजमर्रा की जिंदगी में नागरिक के जीवन में सरलीकरण लाने के लिए भी उपयोग का साधन बनाने का काम हुआ। हालांकि पहले यह धारणा रही थी कि इस क्षेत्र में गोपनीयता में ही कार्य हो, ऐसा होता भी रहा।
केंद्र सरकार ने अंतरिक्ष विभाग को किया बंदिशों से मुक्त
भारत ने हाल ही संसद सत्र के दौरान प्रश्नकाल में बताया था कि इसरो ने 19 देशों के 177 सैटेलाइट को लॉन्च किया। सबसे खास बात यह रही कि ये 19 देश विकसित देश थे। इनमें ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, फ्रांस, इजरायल, जापान शामिल हैं। भारत से विकसित देशों के इतनी बड़ी मात्रा में सैटेलाइट लॉन्च होने से साफ है कि पीएम मोदी ने इसे पिछली बंदिशों से मुक्त कर दिया। दूसरा यह कि विकसित देशों को भी भारतीय वैज्ञानिकों पर इतनी अधिक विश्वसनीयता है कि यदि उनके सैटेलाइट की लॉन्चिंग भारत से होती है तो उन्हें एक सामान्य ढंग से उनके लॉन्च होने की गारंटी मिल जाती है। भारत में अभी तक जितनी भी इस तरीके की लॉन्चिंग हुई है बड़े ही सफल ढंग से हुई है।
देश के पास 100 से अधिक स्टार्टअप्स
इन सबके बीच आने वाले समय में निश्चय ही इस प्रकार की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी तो अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण योगदान भी अंतरिक्ष विज्ञान के माध्यम से होगा। बहुत कम ये बात सामने आती है कि अंतरिक्ष विज्ञान के विभाग को प्राइवेट प्लेयर्स के लिए खोल दिया गया, लेकिन इस थोड़े से अवधि काल में भी देश के पास 100 से अधिक स्टार्टअप्स हैं। भारत के इन स्टार्टअप्स की गिनती दुनिया के किसी भी स्टार्टअप ग्रुप के साथ की जा सकती है। हाल ही स्काई रूट ने जो लॉन्चिंग की है दुनिया के चंद एक प्राइवेट ग्रुप्स में से है जिन्होंने अपना रॉकेट विकसित किया हो।
ट्रेनों को दुर्घटना से बचाने के लिए निकाला हल
तकरीबन 6 साल पहले 2016 में विज्ञान भवन में पीएम मोदी के निर्देश के बाद अंतरिक्ष विभाग और दूसरे मंत्रालयों की एक बैठक हुई थी जिसमें स्पेस एप्लीकेशंस की बात की गई थी, ताकि इसकी मदद से मंत्रालयों के इश्यूज को निपटाया जा सके। इस कड़ी में अंतरिक्ष विभाग के वैज्ञानिकों को बारी-बारी से अन्य मंत्रालयों और अन्य विभागों के साथ इस पर चर्चा की ताकि वे जानकारी साझा कर सकें कि कौन-कौन सी तकनीक इस्तेमाल में लाई जा सकती हैं। उदाहरण के तौर पर उस रेल को दुर्घटनाओं से बचाने के लिए स्पेस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जा सकता है। यदि ट्रेन ट्रैक पर दौड़ रही है और उसके सामने यदि 10-15 किलोमीटर की दूरी पर कोई ऐसी ऑब्जेक्ट आ जाता है जिससे दुर्घटना होना संभव है तो ऐसे में स्पेस टेक्नोलॉजी के माध्यम से उसका पता लगाकर सूचना के माध्यम से सही समय पर ट्रेन को रोका जा सकता है और दुर्घटना होने से बचाया जा सकता है। इसी तरह अंतरिक्ष विभाग भारत के तमाम मंत्रालयों के साथ बातचीत करके उनकी समस्या का समाधान निकालने के लिए स्पेस तकनीक के इस्तेमाल कर रहा है।
रक्षा आत्मनिर्भरता की ताकत बनीं भारत की स्वदेशी मिसाइलें
भारत ने वर्ष 2022 में रक्षा आत्मनिर्भरता की ओर तेजी से कदम बढ़ाते हुए रक्षा क्षेत्र में नया मुकाम हासिल किया है। भारत ने एक से एक स्वदेशी मिसाइलों का परीक्षण करके आसमान में अपनी ताकत दिखाई है। इसके साथ ही वर्ष 2022 की बात की जाए तो डिफेंस और एयरोस्पेस सेक्टर में इनोवेशन को बढ़ावा देने के लिए लगभग 500 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। एक ओर जहां आधुनिक मिसाइल प्रणालियों के जरिए भारत ने एयरोस्पेस में बढ़ती ताकत का एहसास दुनिया को कराया है, वहीं ‘मेक इन इंडिया और मेक फॉर द वर्ल्ड’ विजन के अनुरूप स्वदेशी हथियार प्रणालियों के सफल परीक्षणों से भारत ने रक्षा क्षेत्र में नया मुकाम हासिल किया है। वर्ष 2022 में एयरोस्पेस सेक्टर और मिसाइल रक्षा प्रणाली में भारत द्वारा किए गए सफल प्रयास में इन स्वदेशी मिसाइलों का अहम योगदान रहा।
मैन पोर्टेबल एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल: डीआरडीओ ने जनवरी के महीने में मैन पोर्टेबल एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल के फाइनल डिलीवरेबल कॉन्फिगरेशन का सफलतापूर्वक परीक्षण किया। स्वदेशी रूप से विकसित एंटी-टैंक मिसाइल कम वजन वाली मिसाइल है। इसे थर्मल इंडिकेशन की मदद से एकीकृत एक मैन पोर्टेबल लॉन्चर से लॉन्च किया जाता है। परीक्षण के समय मिसाइल ने निर्धारित लक्ष्य पर निशाना साधा और उसे नष्ट कर दिया।
मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल: इस मिसाइल प्रणाली ने एक बार फिर दो मिसाइलों के रूप में अपनी प्रभावशीलता साबित की। उड़ान परीक्षणों के दौरान एकीकृत परीक्षण रेंज, चांदीपुर में उच्च गति वाले हवाई लक्ष्यों के खिलाफ सीधी हिट हासिल की। मार्च में ओडिशा के तट पर समुद्री स्किमिंग और उच्च ऊंचाई की कार्यक्षमता को कवर करने वाले लक्ष्यों के खिलाफ हथियार प्रणाली की सटीकता और विश्वसनीयता स्थापित करने के लिए लॉन्च किए गए।
हेलिना मिसाइल: स्वदेशी रूप से विकसित हेलीकॉप्टर से अप्रैल में एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल ‘हेलीना’ लॉन्च की गई। इस मिसाइल का विभिन्न उच्च-ऊंचाई वाले क्षेत्रों में दो बार सफलतापूर्वक उपयोगकर्ता उड़ान परीक्षण किया गया। यह उड़ान परीक्षण डीआरडीओ, भारतीय सेना और भारतीय वायु सेना ने संयुक्त रूप से आयोजित किए थे। उड़ान परीक्षण एक उन्नत हल्के हेलीकॉप्टर से किए गए थे और मिसाइल को नकली टैंक लक्ष्य को भेदते हुए सफलतापूर्वक दागा गया था।
ब्रह्मोस एक्सटेंडेड रेंज एडिशन: मई में भारत ने सुखोई-30 एमकेआई लड़ाकू विमान से ब्रह्मोस एयर लॉन्च मिसाइल के एक्सटेंडेड रेंज एडिशन का सफलतापूर्वक परीक्षण किया। योजना के अनुसार विमान से प्रक्षेपण किए गए मिसाइल ने बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में निर्धारित लक्ष्य पर सीधा प्रहार किया। पृथ्वी-II कम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल पृथ्वी-II का सफल प्रक्षेपण जून में एकीकृत परीक्षण रेंज, चांदीपुर, ओडिशा से किया गया। यह मिसाइल प्रणाली बहुत उच्च स्तर की सटीकता के साथ लक्ष्यों को भेदने में सक्षम है।
नेवल एंटी-शिप मिसाइल: डीआरडीओ और भारतीय नौसेना ने मई में ओडिशा के तट पर चांदीपुर के इंटीग्रेटेड टेस्ट रेंज से नौसेना के हेलीकॉप्टर से लॉन्च की गई स्वदेशी रूप से विकसित नेवल एंटी-शिप मिसाइल का पहला उड़ान-परीक्षण किया। मिसाइल ने जरूरी समुद्री स्किमिंग प्रक्षेपवक्र का पालन किया और सही नियंत्रण और मिशन एल्गोरिदम को मान्य करते हुए उच्च स्तर की सटीकता के साथ लक्ष्य को मार गिराया।
लेजर-गाइडेड एंटी-टैंक मिसाइल: स्वदेशी रूप से विकसित लेजर-गाइडेड एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल का जून में आर्मर्ड कॉर्प्स सेंटर एंड स्कूल, अहमदनगर के सहयोग से केके रेंज में डीआरडीओ और भारतीय सेना ने मुख्य युद्धक टैंक अर्जुन से सफलतापूर्वक परीक्षण किया। परीक्षण में एटीजीएम ने सटीकता के साथ लक्ष्य को न्यूनतम दूरी पर सफलतापूर्वक पराजित किया। पूरी तरह से स्वदेशी ATGM विस्फोटक रिएक्टिव आर्मर (ERA) संरक्षित बख्तरबंद वाहनों के लिए भारी मात्र में एंटी-टैंक विस्फोटक वारहेड का उपयोग करता है।
ऑटोनॉमस फ्लाइंग विंग टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटरः ऑटोनॉमस फ्लाइंग विंग टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर की पहली उड़ान जुलाई में कर्नाटक के चित्रदुर्ग स्थित एरोनॉटिकल टेस्ट रेंज से सफलतापूर्वक भरी गई। पूरी तरह से ऑटोनॉमस मोड में चलते हुए इस विमान ने एक बेहतरीन उड़ान का प्रदर्शन किया, जिसमें वे पॉइंट नेविगेशन, टेक-ऑफ और एक सहज टचडाउन शामिल है।वर्टिकल लॉन्च शॉर्ट रेंज सरफेस-टू-एयर मिसाइल: वर्टिकल लॉन्च शॉर्ट रेंज सरफेस टू एयर मिसाइल (VL-SRSAM) का डीआरडीओ और भारतीय नौसेना ने 23 अगस्त 2022 को उड़ीसा, चांदीपुर में भारतीय नौसेना के जहाज से सफलतापूर्वक परीक्षण किया। इससे पहले भी यह परीक्षण भारतीय नौसैनिक पोत से 24 जून, 2022 को किया गया था। सी-स्किमिंग लक्ष्यों सहित निकट दूरी पर विभिन्न हवाई खतरों को बेअसर करने के लिए यह प्रणाली भारतीय नौसेना को और भी अधिक मजबूती प्रदान करेगी।
क्विक रिएक्शन सरफेस टू एयर मिसाइल: भारतीय सेना और DRDO ने सितंबर में हाई-स्पीड एयरबोर्न टारगेट के खिलाफ छह उड़ान परीक्षण किए। यह परीक्षण विभिन्न प्रकार की मिसाइलों सहित अलग-अलग परिदृश्यों में हथियार प्रणाली की क्षमताओं का आकलन करने के लिए और खतरे का अनुकरण किया गया था।
सबमरीन लॉन्च बैलिस्टिक मिसाइल: आईएनएस अरिहंत ने अक्टूबर में पनडुब्बी से छोड़ी जाने वाली बैलिस्टिक मिसाइल का प्रभावी परीक्षण किया। मिसाइल का आवश्यक रेंज में परीक्षण किया गया और बंगाल की खाड़ी के भीतर लक्ष्य स्थान पर बड़ी सटीकता के साथ निशाना साधा गया। हथियार उपकरण के सभी परिचालन और तकनीकी मापदंडों का सत्यापन किया गया।
अग्नि-3: भारत ने इंटरमीडिएट रेंज बैलिस्टिक मिसाइल अग्नि-3 का सफल प्रशिक्षण ओडिशा के एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप से किया था। यह प्रशिक्षण नवंबर के महीने में पूरी की गई। यह प्रशिक्षण सामरिक बल कमांड के तत्वावधान में किए गए रेगुलर लॉन्च का हिस्सा था। एक पूर्व निर्धारित सीमा के लिए इस उड़ान परीक्षण को लॉन्च किया गया था और इसने सिस्टम के सभी परिचालन मापदंडों का सत्यापन किया गया। इससे पहले अग्नि-4 का सफल प्रशिक्षण प्रक्षेपण जून में किया गया था। इसने सभी परिचालन मापदंडों के साथ-साथ सिस्टम की जरूरी अहर्ताओं को भी पूरा किया।
बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस इंटरसेप्टर: बड़े मारक क्षमता वाले चरण- II बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस इंटरसेप्टर एडी-1 मिसाइल का सफल प्रथम उड़ान परीक्षण डीआरडीओ द्वारा नवंबर में ओडिशा के तट से दूर अब्दुल कलाम द्वीप से किया गया। यह उड़ान-परीक्षण अलग-अलग भौगोलिक स्थानों पर रखे गए सभी हथियार प्रणाली की एक साथ भागीदारी से किया गया था। एडी-1 एक लंबी दूरी की इंटरसेप्टर मिसाइल है, जिसकी डिजाइन लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों के एक्सो-वायुमंडलीय और एंडो-वायुमंडलीय इंटरसेप्टर के लिए की गई है।
अग्नि-5: रक्षा क्षेत्र को बड़े पैमाने पर बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारत ने 15 दिसंबर 2022 को परमाणु-सक्षम इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) अग्नि-V का सफलतापूर्वक परीक्षण किया। मिसाइल का परीक्षण ओडिशा तट के एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप से किया गया। यह अग्नि मिसाइल श्रृंखला का नवीनतम परीक्षण था। यह मिसाइल उच्च स्तर की सटीकता के साथ करीब 5,000 किलोमीटर दूर तक के लक्ष्य को भेदने में सक्षम है।
लखनऊ डेस्क एडिटर: प्रीति