नई दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने जानकारी दी है कि भारत में कई साल से नवजात शिशुओं में शिगेलोसिस संक्रमण का जोखिम बना हुआ है जो शिगेला बैक्टीरिया की वजह से होता है। दुनिया में पहली बार 1896 में इस बीमारी की पहचान जापान के माइक्रोबायोलॉजिस्ट कियोशी शिगा ने की जिसके चलते इसे शिगेला नाम मिला।
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देश के वैज्ञानिकों ने 128 साल पुरानी बीमारी का तोड़ तलाश लिया है। पिछले कई वर्षों से चल रहे शोध के बाद वैज्ञानिकों ने शिगेला बैक्टीरिया से लड़ने वाला पहला स्वदेशी टीका खोजा है, जो बैक्टीरिया के 16 उप स्वरूपों पर असरदार है। पोलियो की तरह इसकी खुराक भी मौखिक रूप से दी जा सकती है।
नई दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने जानकारी दी है कि भारत में कई साल से नवजात शिशुओं में शिगेलोसिस संक्रमण का जोखिम बना हुआ है जो शिगेला बैक्टीरिया की वजह से होता है। दुनिया में पहली बार 1896 में इस बीमारी की पहचान जापान के माइक्रोबायोलॉजिस्ट कियोशी शिगा ने की जिसके चलते इसे शिगेला नाम मिला। यह रोटा वायरस के बाद दूसरा और पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण है। यह संक्रमण दूषित भोजन या पानी पीने से हो सकता है।
आईसीएमआर के कोलकाता स्थित राष्ट्रीय जीवाणु संक्रमण अनुसंधान संस्थान की टीम पिछले कई साल से इस बीमारी के टीका की खोज में जुटी थी जिसमें अब सफलता हासिल हुई है। फिलहाल आईसीएमआर ने इस टीका के उत्पादन और व्यवसाय के लिए देश की प्राइवेट कंपनियों से प्रस्ताव मांगा है।