Thursday, November 21, 2024

देश के 76 फीसदी से ज्यादा शहरों में प्रदूषण से हालत खराब, महज चार फीसदी शहरों में ही स्थिति अच्छी

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देश में बढ़ता प्रदूषण का थमने का नाम ही नहीं ले रहा। देश के 76 फीसदी से ज्यादा शहरों में प्रदूषण से हालात चिंताजनक बने हुए हैं। वहीं महज 4 फीसदी शहरों में हवा साफ है। इन दिनों भारत के कई शहरों में प्रदूषित जहरीली हवा में सांस लेना एक पैकेट सिगरेट पीने के बराबर है।

एक तरह से वायु प्रदूषण तंबाकू से भी ज्यादा खतरनाक होता है। एक अंतरराष्ट्रीय एक्यूआई निगरानी एजेंसी आईक्यूएयर ने वर्ष 2023 में दिल्ली को सबसे प्रदूषित राजधानी के तौर पर चिह्नित किया था। अमेरिकन शहर बर्कले के शोधकर्ता रिचर्ड ए. मिलर और एलिजाबेथ मिलर ने वायु प्रदूषण को सिगरेट के धुएं से तुलना करने के लिए ऑनलाइन कैलकुलेटर बनाया है। उनके अनुसार अगर कोई व्यक्ति 64  वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) लेवल पर 24 घंटे तक सांस ले रहा है तो यह दिन भर में एक सिगरेट पीने जैसा है। कुछ भारतीय शहरों में सांस लेना इन दिनों एक दिन में एक पैकेट से ज्यादा सिगरेट पीने के बराबर है। राजधानी दिल्ली की जहरीली हवा में प्रदूषण एक दिन में 49 सिगरेट पीने जैसा है। जयपुर की हवा में सांस लेने वाले लोग 10.9 सिगरेट व भोपाल की हवा 10.6 सिगरेट के बराबर जहरीली है। इसी तरह लखनऊ में 12.4, पटना में14.1, कोलकाता में  9.2, भुवनेश्वर में 6.7 और चेन्नई में हवा 12.1 सिगरेट के बराबर जहरीली है।
बच्चों के लिए हालात बेहद चिंताजनक
देश के व्यस्त शहरों में  मौजूद वायु प्रदूषण बच्चों के स्वास्थ्य पर गहरा असर डाल रहा है। इससे न केवल बच्चों का विकास अवरुद्ध होता है बल्कि बेहद खराब परिस्थितियों में यह जन्मे और अजन्मे बच्चों की असमय मृत्यु की वजह तक बन सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वायु प्रदूषण के संपर्क में आने वाली गर्भवती महिलाओं को कई तरह के खतरों का सामना करना पड़ सकता है। इसकी वजह से जहां जन्म के समय कम वजन और समय से पहले प्रसव जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
धूम्रपान के मुकाबले बेहद कठिन है वायु प्रदूषकों का विश्लेषण
शोधकर्ताओं के अनुसार धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। यह तथ्य इस नशे की लत, कैंसर पैदा करने वाले उत्पाद के खिलाफ दशकों से चले आ रहे व्यापक अभियान के माध्यम से लोगों के दिमाग में बैठ गया है। लेकिन दूसरी ओर वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य प्रभावों की व्याख्या करना और इनके प्रदूषकों की जटिल प्रकृति को देखते हुए इनका विश्लेषण करना बहुत अधिक कठिन है। इस समस्या से निपटने के लिए भौतिक विज्ञानी रिचर्ड मुलर और उनकी बेटी एलिज़ाबेथ मुलर ने एक अभिनव दृष्टिकोण पेश किया। उन्होंने परिवेशी वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य प्रभावों की तुलना सिगरेट से होने वाले नुकसानों से की । व्यापक शोध के माध्यम से बर्कले अर्थ के वैज्ञानिक प्राथमिक प्रदूषक महीन कण पदार्थ (पीएम2.5) को सिगरेट के बराबर बदलने के एक मोटे मूल्य पर पहुंचे।
भारत में तंबाकू से हर साल 10 लाख व प्रदूषण से होती हैं 12.4 लाख मौतें 
 वायु प्रदूषण के कारण भारत में हर साल 12.4 लाख लोगों की असमय मौत होती है। दूसरी ओर तम्बाकू के कारण हर साल 10 लाख से ज्यादा लोगों की मौत होती है। दोनों मिलकर देश में होने वाली कुल मौतों में से 20 फीसदी से ज्यादा के लिए जिम्मेदार हैं। बर्कले अर्थ द्वारा प्रस्तावित रूपांतरण विधि और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वायु प्रदूषण डेटा  का उपयोग करते हुए द वेदर चैनल इंडिया ने भारत के दस महानगरों दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, अहमदाबाद, बेंगलुरु, हैदराबाद इंदौर, जयपुर और पुणे के वातावरण का विश्लेषण किया।
शारीरिक संरचना पर प्रभाव और भी हानिकारक
वायु प्रदूषण की वजह से बच्चों की शारीरिक संरचना पर पड़ने वाले प्रभाव और भी अधिक हानिकारक हैं।  जर्नल ऑफ एनवायर्नमेंटल इकोनॉमिक्स एंड मैनेजमेंट में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार वायु प्रदूषण बच्चों न केवल बच्चों के विकास पर न सिर्फ नकारात्मक असर डालता है बल्कि उनकी शारीरिक संरचना को भी बदल देता है। गर्भावस्था और बचपन के दौरान प्रदूषण के महीन कणों जैसे पीएम 2.5 और नाइट्रोजन ऑक्साइ के संपर्क में आने से मस्तिष्क के श्वेत पदार्थ की संरचना में बदलाव आता है। जीवन के शुरूआती वर्षों में प्रदूषकों के संपर्क में आने से दिमाग के भीतर मौजूद श्वेत पदार्थ पर स्थायी प्रभाव पड़ सकता है।
हवा में मौजूद हैं हानिकारक कण
वार्षिक औसत पीएम2.5 के आधार पर भारतीय महानगरों के लिए सिगरेट के समतुल्य दिल्ली का वार्षिक औसत पीएम 2.5 के साथ-साथ अधिकतम 24 घंटे के पीएम 2.5 के मामले में सबसे प्रदूषित महानगर था। वार्षिक औसत प्रदूषण के मामले में लखनऊ और कोलकाता दिल्ली  के ठीक बाद हैं। मुंबई और चेन्नई सबसे कम प्रदूषित महानगर बने रहे क्योंकि तटीय समुद्री हवा प्रदूषकों को फैलाने में मदद करती है। दिल्ली एनसीआर और देश के बड़े भाग में इस समय धुंध नहीं बल्कि, हवा में मौजूद धूल के कण हैं। वो धूल जो कभी कंस्ट्रक्शन की वजह से, कभी पोल्यूशन की वजह से, कभी पराली की वजह से लगातार बढ़ रही है। जब हम सांस लेते हैं तो यही कण हमारी सांस की नली में पहुंचकर शरीर को भारी नुकसान पहुंचाते हैं।
घट रही है जीवन प्रत्याशा
एक रिपोर्ट के मुताबिक 130 करोड़ भारतीय आज ऐसी हवा में सांस ले रहे हैं, जहां प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी दिशानिर्देशों से कहीं ज्यादा है। ऐसे में यदि हर भारतीय साफ हवा में सांस ले तो उससे जीवन के औसतन 5.3 साल बढ़ सकते हैं। इसका सबसे ज्यादा फायदा दिल्ली-एनसीआर में देखने को मिलेगा।
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