Monday, April 21, 2025

बात सेहत की: शरीर की रक्षक एंटीबॉडीज ही कर रहीं मस्तिष्क पर हमला, विशेषज्ञ बोले- हर ओपीडी में आते हैं मरीज

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शरीर की रक्षक कही जाने वालीं एंटीबॉडीज ही मस्तिष्क पर हमला करके इंसेफ्लाइटिस पैदा कर रही हैं। इनके हमले से मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों में सूजन आती है और रोगी गंभीर स्थिति में पहुंच जाता है। इसे ऑटोइम्यून इंसेफ्लाइटिस कहते हैं। रोगी की जान बचाने के लिए डायलिसिस करके विद्रोही एंटीबॉडीज को निकालना पड़ता है। इस संबंध में हैलट के मल्टी सुपर स्पेशियलिटी एंड पीजीआई के न्यूरोलॉजी विभाग ने रिपोर्ट तैयार की है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर रोगी मर्ज की शुरुआत में ही अस्पताल आ जाए तो उसके इलाज में आसानी रहती है।

आईएमएसीजीपी के 42वें रिफ्रेशर कोर्स में भी इस रिपोर्ट को प्रस्तुत किया गया था। न्यूरोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. आलोक वर्मा ने बताया कि इसका मकसद है कि आम डॉक्टर भी ऑटो इम्यून इंसेफ्लाइटिस के लक्षण जानें और समय से रोगी को रेफर करें। विभाग की हर ओपीडी में इस मर्ज के औसत पांच-छह रोगी आते हैं। साल भर में ऑटोइम्यून इंसेफ्लाइटिस के सौ रोगियों के आंकड़े इकट्ठे किए गए। ये वे रोगी हैं जो न्यूरोलॉजी विभाग में आए। इसके अलावा निजी अस्पतालों में इसी तरह के रोगी इलाज के लिए आ रहे हैं। विद्रोही एंटीबॉडीज का हमला मस्तिष्क के किसी भी हिस्से में हो सकता है।

नया प्लाज्मा देने से रोगियों को मिलता है आराम
लेकिन, अस्पताल आए रोगियों की जांच में टेंपोरल लोब और लिंबिक सिस्टम अधिक प्रभावित पाया गया। इससे रोगियों की याददाश्त चली जाती है, बेहोशी आने लगती है और शरीर में अकड़न होती है। इसके साथ ही उनका बर्ताव बदल जाता है। इन लक्षणों के आने पर रोगी का तुरंत इलाज शुरू होना जरूरी होता है। विभागाध्यक्ष डॉ. वर्मा ने बताया कि इन रोगियों को स्टीरॉयड देने के साथ प्लाज्मा थैरेपी की जाती है। डायलिसिस करके खून से विद्रोही हो चुकीं एंटीबॉडीज को निकाल दिया जाता है। इसके बाद नया प्लाज्मा दिया जाता है। इससे रोगियों को आराम मिलता है।
दुधमुंहे से लेकर बुजुर्ग तक को होती दिक्कत
ऑटोइम्यून इंसेफ्लाइटिस की चपेट में दुधमुंहे बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक आ रहे हैं। न्यूरोलॉजी विभागाध्यक्ष का कहना है कि छोटे बच्चों का बालरोग अस्पताल में इलाज होता है। रेफरेंस आने पर विभाग के विशेषज्ञ वहां जाकर देखते हैं। इसके अलावा 15 वर्ष से लेकर 80 साल के बुजुर्गों का इलाज विभाग में होता है। यह ऑटोइम्यून रोग का कारण पता नहीं है। लेकिन यह माना जाता है कि वायरल संक्रमण या किसी रोग की दवा खाने के बाद इस तरह की दिक्कत हो सकती है।
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