लखनऊ डेस्क: हिजाब को अनिवार्य करने को लेकर ईरान से शुरू हुआ विरोध कई देशों तक फैलता जा रहा है। बर्लिन में भी इसके खिलाफ प्रदर्शन हुए हैं। इस मामले में अब नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला युसुफजई की भी एंट्री हो गई है। यह पहला मौका नहीं है, जब मलाला ने हिजाब को लेकर अपनी राय जाहिर की है। भारत में कर्नाटक में शुरू हुए हिजाब विवाद को लेकर भी उन्होंने बयान दिया था। बता दें कि ईरान में 22 साल की एक लड़की की मौत के बाद सरकार के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शन होने लगे हैं। 13 सितंबर को हिजाब न पहनने की वजह से माहसा अमिनी को मॉरल पुलिस ने हिरासत में लिया था। तीन दिन बाद उसकी मौत हो गई थी। अकेले ईरान में 15 से ज्यादा शहरों में प्रदर्शन हो रहे हैं। इसमें 33 लोगों के मारे जाने की खबर है। हालांकि सरकार यह संख्या 17 बता रही है।
अब माहसा को सही ठहराने में लगीं मलाला
हिजाब नहीं पहनने के इल्जाम में पुलिस कस्टडी में 22 साल की माहसा अमीनी की मौत के बाद ईरान में जबर्दस्त विरोध खड़ा हो गया है। वो हिरासत में ही वे कोमा में चली गईं और 16 सितंबर को उनकी मौत हो गई थी। इसके बाद से कुर्दिस्तान के शहरों के बाद राजधानी तेहरान में भी प्रदर्शन हो रहे हैं। महिलाएं हिजाब को अनिवार्य की जगह वैकल्पिक करने पर अड़ी हैं। मलाला इस विरोध के समर्थन में खड़ी हो गई हैं। नोबेल पुरस्कार विजेता और बालिका शिक्षा अधिकार कार्यकर्ता मलाला यूसुफजई (जो खुद उत्पीड़न की शिकार थीं) ने अमिनी के साथ एकजुटता व्यक्त की है। अमिनी की मौत और इसके पीछे के मकसद की निंदा करते हुए मलाला ने एक महिला को चुनने के अधिकार पर जोर दिया।
मलाला ने कहा-“एक महिला जो भी पहनना चुनती है, उसे अपने लिए फैसला करने का अधिकार है। जैसा कि मैंने पहले कहा है कि अगर कोई मुझे अपना सिर ढंकने के लिए मजबूर करता है, तो मैं विरोध करूंगा। अगर कोई मुझे अपना दुपट्टा हटाने के लिए मजबूर करता है, तो मैं विरोध करूंगी।” ऐसा मलाला की एक इंस्टाग्राम स्टोरी में कहा गया है, जिसमें अमिनी की कट आउट तस्वीर है।
कर्नाटक विवाद में मलाला ने यह कहा था
कर्नाटक में हिजाब विवाद पर मलाला ने एक tweet किया था-“कॉलेज लड़कियों को पढ़ाई और हिजाब में चुनाव करने का दबाव बना रहा है। लड़कियों को उनके हिजाब में स्कूल जाने से मना करना भयावह है। महिलाओं के कम या ज्यादा पहनने का जबरिया ऑब्जेक्शन जारी है। भारतीय महिलाओं को हाशिए पर भेजे जाने की कवायद पर भारतीय नेताओं को रोका जाना चाहिए।”
कौन हैं मलाला?
मलाला यूसुफजई का जन्म पाकिस्तान में हुआ था। उन्हें 2012 में तालिबान आतंकवादियों ने गोली मार दी थी। मलाला 11 साल की आयु से लड़कियों के हक के लिए आवाज उठाने का काम कर रही है। तालिबान के गोली मारने के बाद मलाला को बर्मिंघम के एक अस्पताल ले जाया गया, जहाँ वह ठीक हो गई और बाद में बालिकाओं की शिक्षा के लिए अपनी सक्रियता जारी रखी। 2014 में, महीनों की सर्जरी और पुनर्वास के बाद, वह यूके में अपने नए घर में अपने परिवार में शामिल हो गई। अपने पिता की मदद से, उन्होंने मलाला फंड की स्थापना की, जो हर लड़की को उसके द्वारा चुने गए भविष्य को हासिल करने का अवसर देने के लिए समर्पित एक चैरिटी है।
यूसुफजई को दिसंबर 2014 में नोबेल शांति पुरस्कार मिला और वह अब तक की सबसे कम उम्र की नोबेल पुरस्कार विजेता बनीं। उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र, राजनीति और अर्थशास्त्र का अध्ययन किया और 2020 में स्नातक की उपाधि प्राप्त की।