Friday, November 22, 2024

चिंताजनक: मानसून कमजोर कर रहे एरोसोल, मानसून से पहले और बाद में होने वाली बारिश पर भी डाल रहे असर

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मौसम विभाग : अध्ययन के अनुसार, हवा में एरोसोल का उच्च स्तर बारिश विशेषकर मानसून को कमजोर कर रहा है। यहां तक की ये गैसों की तुलना में बारिश को कहीं ज्यादा प्रभावित कर रहे हैं। इस शोध में शोधकर्ताओं ने 1920 से 2080 के बीच दक्षिण एशिया में बारिश पर इनके प्रभावों को समझने का प्रयास किया।

अगले कुछ दशकों तक एरोसोल भारत और दक्षिण एशिया में मानसून और बारिश के पैटर्न को प्रभावित करते रहेंगे। इनकी वजह से मानसून के दौरान होने वाली बारिश में कमी का दौर आगे भी जारी रह सकता है। एक अध्ययन के अनुसार, ये एरोसोल न केवल मानसून, बल्कि मानसून से पहले और बाद में होने वाली बारिश पर भी असर डाल रहे हैं। आगे चलकर मानसून पर ग्रीनहाउस गैसों का प्रभाव हावी हो जाएगा।इंस्टीट्यूट फॉर एटमॉस्फेरिक एंड क्लाइमेट साइंस, ईटीएच ज्यूरिख के डॉ. जितेंद्र सिंह की ओर से अंतराष्ट्रीय शोधकर्ताओं के सहयोग से किए इस अध्ययन के नतीजे जर्नल जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित हुए हैं। शोध में यह भी सामने आया है कि स्थानीय एरोसोल बारिश के पैटर्न में आने वाले अधिकांश बदलावों की वजह बन रहे हैं।

1920 से 2080 के बीच असर जानने का प्रयास
अध्ययन के अनुसार, हवा में एरोसोल का उच्च स्तर बारिश विशेषकर मानसून को कमजोर कर रहा है। यहां तक की ये गैसों की तुलना में बारिश को कहीं ज्यादा प्रभावित कर रहे हैं। इस शोध में शोधकर्ताओं ने 1920 से 2080 के बीच दक्षिण एशिया में बारिश पर इनके प्रभावों को समझने का प्रयास किया।

प्राकृतिक और इन्सानी दोनों गतिविधियां जिम्मेदार
वायु प्रदूषण के कारण हमारे चारों ओर हवा में अत्यंत महीन कण मौजूद होते हैं, इन्हें एरोसोल कहा जाता है। इनमें से कुछ प्राकृतिक गतिविधियों जैसे रेगिस्तानी धूल, ज्वालामुखी की राख, जंगल की आग, पौधों से मुक्त होते कार्बनिक पदार्थ से पैदा होते हैं। वहीं, कुछ के लिए इन्सानी गतिविधियां जिम्मेदार होती हैं, जैसे शहरों से पैदा होता प्रदूषण, धूल, कृषि से पैदा होती धूल और धुंध, वाहनों और विमानों से होता उत्सर्जन और यहां तक कि हमारे डिओडोरेंट और हेयरस्प्रे जैसे रोजमर्रा के उत्पाद भी इसका स्रोत होते हैं।

दक्षिण एशिया पर असर
शोध के मुताबिक, भारत समेत दक्षिण एशिया में स्थानीय स्तर पर बढ़ता एरोसोल का स्तर आने वाले वर्षों में बारिश में कमी को जारी रख सकता है। ऐसे में ग्रीनहाउस गैसों के कारण मानसून (जून से सितंबर) में जो वृद्धि के कयास लगाए गए हैं उनके प्रभाव सामने आने में कई दशकों का समय लगेगा। इसी तरह मानसून के बाद (अक्टूबर से दिसंबर) होने वाली बारिश में भी सुधार आने में करीब दस साल और लगेंगे।

2060 तक धीरे-धीरे बारिश बढ़ेगी 
शोध में सामने आया है कि 2049 तक दक्षिण एशिया के उत्तर-पश्चिमी हिस्सों में फिर 2060 के दशक में मध्य और दक्षिणी भारत में तथा 2079 तक दक्षिण एशिया में ज्यादातर हिस्सों में बारिश धीरे-धीरे बढ़ेगी।

 

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