प्राकृतिक और इन्सानी दोनों गतिविधियां जिम्मेदार
वायु प्रदूषण के कारण हमारे चारों ओर हवा में अत्यंत महीन कण मौजूद होते हैं, इन्हें एरोसोल कहा जाता है। इनमें से कुछ प्राकृतिक गतिविधियों जैसे रेगिस्तानी धूल, ज्वालामुखी की राख, जंगल की आग, पौधों से मुक्त होते कार्बनिक पदार्थ से पैदा होते हैं। वहीं, कुछ के लिए इन्सानी गतिविधियां जिम्मेदार होती हैं, जैसे शहरों से पैदा होता प्रदूषण, धूल, कृषि से पैदा होती धूल और धुंध, वाहनों और विमानों से होता उत्सर्जन और यहां तक कि हमारे डिओडोरेंट और हेयरस्प्रे जैसे रोजमर्रा के उत्पाद भी इसका स्रोत होते हैं।
दक्षिण एशिया पर असर
शोध के मुताबिक, भारत समेत दक्षिण एशिया में स्थानीय स्तर पर बढ़ता एरोसोल का स्तर आने वाले वर्षों में बारिश में कमी को जारी रख सकता है। ऐसे में ग्रीनहाउस गैसों के कारण मानसून (जून से सितंबर) में जो वृद्धि के कयास लगाए गए हैं उनके प्रभाव सामने आने में कई दशकों का समय लगेगा। इसी तरह मानसून के बाद (अक्टूबर से दिसंबर) होने वाली बारिश में भी सुधार आने में करीब दस साल और लगेंगे।
2060 तक धीरे-धीरे बारिश बढ़ेगी
शोध में सामने आया है कि 2049 तक दक्षिण एशिया के उत्तर-पश्चिमी हिस्सों में फिर 2060 के दशक में मध्य और दक्षिणी भारत में तथा 2079 तक दक्षिण एशिया में ज्यादातर हिस्सों में बारिश धीरे-धीरे बढ़ेगी।