पारिवारिक न्यायालय ने इस टिप्पणी के साथ एक माह में तलाक को मंजूरी दे दी है। दोनों में सात साल पहले प्रेम विवाह हुआ था।
शादी के सात साल में ही पति-पत्नी के बीच विवाद बहुत बढ़ चुका है। सुलह-समझौते की कोई संभावना नहीं है। ऐसे में छह माह की प्रतीक्षा अवधि का इंतजार दोनों पक्षों का मानसिक कष्ट व तनाव ही बढ़ाएगा। इस टिप्पणी के साथ पारिवारिक न्यायालय लखनऊ के प्रधान न्यायाधीश ने एक मामले में उच्चतम न्यायालय के 1994 के फैसले को नजीर मानते हुए एक माह में ही दंपती का तलाक मंजूर कर लिया।लखनऊ निवासी युवती और बांदा निवासी युवक के बीच सात साल पहले 2017 में प्रेम विवाह हुआ था। दोनों ही आईटी सेक्टर से जुड़े हैं और बर्लिन में नौकरी करते हैं। विवाह के कुछ समय बाद ही दोनों पक्षों में मतभेद इस कदर बढ़े कि उनका साथ रहना मुश्किल हो गया।अंत में दोनों ने अदालत में ये कहते हुए तलाक की अर्जी लगाई कि उनके बीच 15 फरवरी 2022 से कोई संबंध नहीं है, दोनों अलग रह रहे हैं। उनकी कोई संतान नहीं। ऐसे में आपसी सहमति से धारा 13-बी हिंदू विवाह अधिनियम के तहत विवाह को समाप्त करना चाहते हैं। युवती की अधिवक्ता दिव्या मिश्रा का कहना है कि छह माह की अवधि में छूट देने का यह पारिवारिक न्यायालय में अपनी तरह का अनोखा मामला है, क्योंकि इसमें एक माह में तलाक का आदेश पारित कर दिया गया है।
मार्च में कोर्ट में अर्जी, अप्रैल में आया आदेश
दोनों पक्षों ने बीती 18 मार्च को अदालत में याचिका दायर की थी। अप्रैल में दो बार काउंसिलिंग की गई, लेकिन बात नहीं बनी। इसके बाद दोनों पक्षों ने छह माह की अवधि से छूट की याचिका दायर कर दी, जिसे अदालत ने मान लिया और 17 अप्रैल को तलाक को मंजूरी दे दी।
इन फैसलों को बनाया आधार और सुनाया आदेश
प्रधान न्यायाधीश ने उच्चतम न्यायालय द्वारा अमर दीप सिंह बनाम हरवीन कौर व रूपा रेड्डी बनाम प्रभाकर रेड्डी के मामले को आधार बनाया। अदालत ने आदेश में कहा कि दोनों पक्षों के मध्य तलाक की डिक्री पारित की जाती है। पक्षकारों के मध्य हुआ विवाह आपसी सुलह व सहमति के आधार पर समाप्त किया जाता है।