Sunday, December 14, 2025

Auraiya News: जीएसटी व मंडी शुल्क में चोरी से बनते लिफाफे

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औरैया। सरकारी महकमे में जुगाड़ के लिफाफे बनते हैं। ये लिफाफे जीएसटी और मंडी शुल्क चोरी से तैयार होते हैं। जिसके बाद इनकी हिस्सेदारी तय होती है। बाद में तैयार लिफाफे अफसरों की चौखट तक पहुंचते हैं। यहां तक कि अफसर की रैक में भी रख दिए जाते हैं। हर माह यह लिफाफे अपने मुकाम तय समय पर पहुंच जाते हैं। हालांकि कभी कभार इन लिफाफों की मोटाई बढ़ जाती है। अफसर के अनुसार भी इनकी मोटाई तय होती है।गुरुवार को सदर तहसील कार्यालय में वायरल सीसीटीवी फुटेज के लिफाफा प्रकरण में एसडीएम राकेश कुमार पर भ्रष्टाचार की कार्रवाई होने के बाद जानकार इस लिफाफे की हकीकत बयां कर रहे हैं। किसानों को फसली उपज का वाजिब मूल्य दिलाने के लिए जगह-जगह पर मंडियां खोली गई हैं। इनमें आसपास के काश्तकार अपनी फसल लेकर आते हैं। जहां उन्हें बेचकर अपनी फसल का मूल्य भी लेते हैं। इसके एवज में 1.5 फीसदी मंडी शुल्क वसूला जाता है। विभागीय सूत्रों की मानें तो मंडियों में तिलहन पर मंडी कर के साथ-साथ जीएसटी भी लगता है। सरसों, तिली, अलसी, मूंगफली व सूरजमुखी की अच्छी खासी आवक होती है।

सूत्रों की मानें तो सिक्स आर (खरीद बिल) व नाइन आर (विक्रय बिल) से लेकर गेट पास न बनाते हुए सरकारी राजस्व की बड़ी चोरी होती है। कुल माल के मूल्य की तुलना में 1.5 फीसदी मंडी शुल्क अपने आप में बड़ा आंकड़ा होता है। जबकि गेहूं, धान, बाजरा, ज्वार, मक्का, चना, अरहर, उड़द, मूंग दलहनी फसलों पर महज 1.5 फीसदी मंडी शुल्क लिया जाता है। एक मंडी की सालाना शुल्क वसूली 10 करोड़ के पार तक चली जाती है। बस यहीं से लिफाफा बनने की जड़ शुरू होती है। पूरा सिस्टम तैयार होता है। जिसे एक से दूसरे टेबल तक पहुंचना होता है।

सीजन में बढ़ जाती लिफाफे की मोटाई
धान हो या गेहूं फसल कटाई के बाद एकाएक मंडी में आवक बढ़ती है। यह सीजन जितना आढ़तियों के मुनासिब होता है। उससे कहीं ज्यादा लिफाफे के लिए। लिफाफा भी सीजन के अनुसार मोटा हो जाता है। मोटाई कम होने पर अफसर इसकी सुध लेते हैं। यही कारण है कि निरीक्षण शुरू हो जाते हैं। जिससे लिफाफे की मोटाई ठीक-ठाक बनी रहे।

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