आतंकी फंडिंग मामले में दोषी ठहराए गए कश्मीरी अलगाववादी नेता यासीन मलिक ने कम सजा सुनिश्चित करवाने के लिए गांधीवादी कार्ड खेल दिया, हालांकि अदालत ने उसे कड़ी फटकार लगाई। मलिक ने अपनी दलीलों में कहा कि वह हथियार छोड़ने के बाद ‘गांधीवादी सिद्धांतों’ का पालन कर रहा है। उसने कहा, ‘हथियार छोड़ने के बाद मैंने महात्मा गांधी के सिद्धांतों का पालन किया है। तब से मैं कश्मीर में अहिंसक राजनीति कर रहा हूं।’ इस पर स्पेशल जज प्रवीण सिंह ने उसे खूब खरी-खोटी सुनाई और चौरी-चौरा कांड की याद दिलाते हुए कहा कि गांधी का ‘अहिंसा का सिद्धांत’ क्या था और उसने क्या किया। आइए कोर्ट में दी गई मलिक की दलील
यासीन मलिक का गांधीवादी कार्ड और जज की फटकार
यासीन मलिक : सुनवाई के दौरान यासीन मलिक ने दलील दी कि उसने 1994 में हिंसा छोड़ दी थी। अदालत में मलिक द्वारा दाखिल जवाब में कहा गया, ‘1994 में संघर्षविराम के बाद उसने घोषणा की थी कि वह महात्मा गांधी के शांतिपूर्ण मार्ग का अनुसरण करेगा और एक अहिंसक राजनीतिक संघर्ष में शामिल होगा। उसने आगे तर्क दिया है कि तब से उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं है कि पिछले 28 वर्षों में उसने किसी भी आतंकवादी को कोई आश्रय प्रदान किया था या किसी आतंकवादी संगठन को कोई साजोसामान संबंधी सहायता प्रदान की थी।’
विशेष न्यायाधीश प्रवीण सिंह : यह सही हो सकता है कि अपराधी ने वर्ष 1994 में बंदूक छोड़ दी हो, लेकिन उसने वर्ष 1994 से पहले की गई हिंसा के लिए कभी कोई खेद व्यक्त नहीं किया था। दोषी ने दावा किया कि उसने अहिंसा के गांधीवादी सिद्धांत का पालन किया था और शांतिपूर्ण अहिंसक संघर्ष का नेतृत्व कर रहा था। हालांकि, सबूत जिसके आधार पर आरोप तय किए गए थे और जिसने उसे दोषी ठहराया है, कुछ और ही कहानी बयां करते हैं। पूरे आंदोलन को हिंसक बनाने की योजना बनाई गई थी।
यहां ध्यान देना चाहिए कि अपराधी महात्मा गांधी का हवाला नहीं दे सकता और उनके अनुयायी होने का दावा नहीं कर सकता क्योंकि महात्मा गांधी के सिद्धांतों में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं थी, चाहे उद्देश्य कितना भी बड़ा हो। चौरी-चौरा में हुई हिंसा की एक छोटी सी घटना पर महात्मा गांधी ने पूरे असहयोग आंदोलन को बंद कर दिया था जबकि घाटी में बड़े पैमाने पर हिंसा होने के बावजूद मलिक ने न तो इसकी निंदा की और न ही विरोध का अपना कैलेंडर वापस लिया। मेरी राय में इस दोषी का कोई सुधार नहीं था।
कई प्रधानमंत्रियों से मुलाकात के दावे पर जज ने कहा– तुमने सबको धोखा दिया
यासीन मलिक : मैंने वीपी सिंह के समय से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक, सभी प्रधानमंत्रियों से मुलाकात की जिन्होंने उससे बातचीत की और उसे एक राजनीतिक मंच दिया। भारत सरकार ने उसे भारत के साथ-साथ बाहर भी अपनी राय व्यक्त करने के लिए सभी मंच प्रदान किए थे और सरकार को एक ऐसे व्यक्ति को अवसर देने के लिए मूर्ख नहीं माना जा सकता जो आतंकवादी कृत्यों में लिप्त था।
जज प्रवीण सिंह : यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि जब मलिक ने दावा किया था कि उसने 1994 के बाद हिंसा का रास्ता छोड़ दिया, भारत सरकार ने इस पर भरोसा किया और उसे सुधार करने का मौका दिया और अच्छे विश्वास में, उसके साथ एक सार्थक बातचीत में शामिल होने की कोशिश की और जैसा कि उसने स्वीकार किया, उसे अपनी राय व्यक्त करने के लिए हर मंच दिया। हालांकि, दोषी ने हिंसा का त्याग नहीं किया बल्कि सरकार के अच्छे इरादों के साथ विश्वासघात करते हुए, उसने राजनीतिक संघर्ष की आड़ में हिंसा को अंजाम देने के लिए एक अलग रास्ता अपनाया। उसने पूरे आंदोलन को हिंसक बनाने की योजना बनाई थी।
मौजूदा मामले में आरोप पर आदेश निर्दिष्ट करता है कि कैसे धन जुटाया गया था और उसे पाकिस्तानी प्रतिष्ठान के साथ-साथ घोषित आतंकवादी हाफिज सईद और अन्य हवाला माध्यम से कैसे प्राप्त किया गया था। इस राशि का इस्तेमाल अशांति पैदा करने के लिए किया गया था, जहां सार्वजनिक विरोध की आड़ में बड़े पैमाने पर पथराव और आगजनी की आतंकी गतिविधियों के लिए भुगतान किया गया था।
बुरहान वानी की मौत पर हुई हिंसा में हाथ नहीं होने के दावे पर जज ने खोली पोल
यासीन मलिक : यह आरोप लगाया गया है कि वह बुरहान वानी के मारे जाने के बाद घाटी में हिंसा के कृत्यों में शामिल था, जो गलत है।
विशेष न्यायाधीश : चूंकि बुरहान वानी की मौत के तुरंत बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया और नवंबर 2016 तक हिरासत में रहा, इसलिए वह हिंसक विरोध-प्रदर्शन में शामिल नहीं हो सकता था।
इतने सख्त थे जज फिर भी क्यों नहीं दी फांसी, जानें
एनआईए ने दलील दी कि मलिक कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और उनके पलायन के लिए जिम्मेदार था। इसलिए उसे फांसी की सजा दी जानी चाहिए। जज प्रवीण सिंह ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि चूंकि यह मुद्दा अदालत के समक्ष नहीं है और इस पर फैसला नहीं किया गया है, इसलिए वो इन तर्कों के प्रभाव में नहीं आएंगे। इस कारण मैं पाता हूं कि यह मामला मौत की सजा देने लायक नहीं है। न्यायाधीश ने कहा कि जिस तरह से अपराध किए गए थे, वह साजिश के रूप में थे, जिसमें उकसाने, पथराव और आगजनी करके विद्रोह का प्रयास किया गया था, और बहुत बड़े पैमाने पर हिंसा के कारण सरकारी तंत्र बंद हो गया था। हालांकि उन्होंने संज्ञान लिया कि अपराध करने का तरीका, जिस तरह के हथियारों का इस्तेमाल किया गया था, उससे वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि विचाराधीन अपराध सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित दुर्लभतम मामले की कसौटी में विफल हो जाएगा।
किन–किन अपराधों में सुनाई गई सजा
न्यायाधीश ने 20 पृष्ठों के अपने फैसले में कहा कि जिस अपराध के लिए मलिक को दोषी ठहराया गया है उनकी प्रकृति गंभीर है। न्यायाधीश ने कहा, ‘वर्तमान मामले में सजा देने के लिए प्राथमिक विचार यह होना चाहिए कि यह उन लोगों के लिए एक निवारक के रूप में काम करे जो समान मार्ग का अनुसरण करना चाहते हैं।’ अदालत ने मलिक को आईपीसी की धारा 120 बी (आपराधिक साजिश), 121-ए (भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने की साजिश) और यूएपीए की धारा 15 (आतंकवाद), 18 (आतंकवाद की साजिश) और 20 (आतंकवादी संगठन का सदस्य होने) के तहत 10-10 साल की जेल की सजा सुनाई। अदालत ने यूएपीए की धारा 13 (गैरकानूनी कृत्य), 38 (आतंकवाद की सदस्यता से संबंधित अपराध) और 39 (आतंकवाद को समर्थन) के तहत प्रत्येक के लिए पांच-पांच साल की जेल की सजा सुनाई। सभी सजा साथ-साथ चलेंगी।